वर्तमान में इंटरनेट व सोशल मीडिया के इस दौर में समाज के कई मुद्दों के समूह में निजता नाम का मुद्दा बार बार सामने आता रहता है ।व्रतमान में इसे लेकर जनता व सरकारें दोनों सजग आने लगी है ।

  • 2016 के अमरीकी चुनावों में कैम्ब्रिज एनालिटीका के दख़ल के बाद से मामला गर्म है ।
  • भारत में सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में निजता को अनु. 21A के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया था ।

2016 के अमरीकी चुनावों में कैम्ब्रिज एनलिटीका नाम की संस्था द्वारा फेसबुक से यूजर का डेटा खरीद कर चुनावों को प्रभावित किया था। इस बात के सामने आने के बाद से पूरी दुनिया में निजता पर बहस ज़ारी है । आम लोगों को अब इस बात का एहसास हो रहा है कि उनके बैंक तथा मोबाइल पासवर्ड के अलावा भी कई ऐसे डाटा और निजी जानकारियां हैं जिनका गलत इस्तेमाल हो रहा है ।

कंपनियों द्वारा यूजर का सर्विलांस कर के उनकी पसन्द – नापसन्द , निजी फैसलों तक को प्रभावित किया जा सकता है । भारत में भी समय समय पर आधार , सोशल मीडिया और वर्तमान में आरोग्य सेतु एप पर भी निजता हनन के आरोप लगाएं जाते हैं ।

भारत में सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में निजता को अनु. 21A के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया था । हाल ही में आधार को सोशल मीडिया से जोड़ने की खबर से भी निजता पर बहसबाजी शुरू हुई थी । इसे लागू करने से सरकार ने इंकार कर दिया है ।

विश्व के कई देशों ने निजता उल्लंघन के ख़िलाफ़ कड़े प्रावधान किएं हैं जिनमें इ.यू , दक्षिण कोरिया जैसे कई देश शामिल हैं । अमरीका में भी कानून की व्यवस्था की गई है लेकिन ये इतने कड़े नही हैं ।भारत में भी जानकार निजता के लिए कड़े कानूनों की मांग करते रहते हैं।

भारत सरकार का कहना है कि वो देश के लोगों की निजता की सुरक्षा को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है । इसी का असर देखा जा सकता है कि अब सरकार व देश की कंपनियों ने देश के लोगों का डाटा देश के बाहर न जाने देने की कोशिशें तेज़ कर दी हैं। इसके लिए गूगल , फेसबुक जैसी कई कंपनियों पर यह दवाब बनाया जा रहा है कि वो भारत में अपने सर्वर स्थापित करें । भारत में सोशल मीडिया और इंटरनेट के यूज़र्स की संख्या देखते हुए इसके सकारात्मक परिणाम आने की उम्मीद है । कई जानकारों का कहना है कि डाटा भविष्य का तेल है जिसकी सुरक्षा अभी से ही बेहद जरूरी है ।