Sunday, November 3, 2024

भारत में न्यायिक विलंब पर लगातार उठते सवाल और इनके उपाय…

कहतें हैं कि न्याय मिलने में हुआ विलम्ब भी एक तरह का अन्याय ही होता है । अगर इस अन्याय को भारतीय परिपेक्ष्य से देखे तो यह हमेशा ही सवालों के घेरे में रहता है ।

  • भारतीय न्यायालयों में वर्तमान में करीब 4 करोड़ से अधिक मामले लंबित पड़ें हैं।
  • वर्तमान में देश में 10 लाख लोगों पर केवल 18 जज हैं ।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में न्यायिक विलम्ब का मुद्दा हमेशा से ही विवादों में बना रहता है । यह मुद्दा एक बड़े प्रकाश में तब आया जब न्यायिक विलंबों पर लगातार कटाक्षों से आहत हो कर देश के तत्कालीन सीजेआई टी.एस ठाकुर  रो पड़ें थे ।

दुनिया के सबसे मजबूत न्याय तंत्रों में से एक भारतीय न्यायलयों में वर्तमान में करीब 4 करोड़ से अधिक मामले लंबित पड़ें हैं। इनमें सर्वोच्च न्यायालय में 59000 , उच्च न्यायलयों में 44 लाख़ व अधीनस्थ न्यायलयों में करीब 3 करोड़ मुक़दमें लंबित हैं जो काफ़ी चिंताजनक विषय है ।

दिल्ली के निर्भया कांड के आरोपियों को सज़ा मिलने में 7 साल लगने , और हैदराबाद व विकास दूबे एनकाउंटर ने इस मुद्दे पर चर्चा को एक बार फिऱ से हवा दे दी है ।
देश में न्यायिक विलंब के कई नुकसान लगातार देखने को मिलते रहते हैं।  उदाहरण स्वरूप अगर कोई रेप का आरोपी जेल में बंद है, तो वह न्यायिक विलम्ब का फायदा उठा कर जमानत या अन्य तरीकों द्वारा पीड़ित और सबूतों को क्षति पहुंचाने का प्रयास करता है । वहीँ एक दूसरा पक्ष ये भी है की कई बार कोई निर्दोष शख्स किसी केस की वजह से जेल तो जाता है, लेकिन उसकी सुनवाई होने और आरोपमुक्त होते होते वो कई साल जेल में गुज़ार चुका होता है। यह भी एक तरीके का अन्याय ही है ।

न्यायिक विलम्ब के कारण — इसके प्रमुख कारणों में से एक जजों , अदालतों व न्यायिक कर्मचारियों की भारी कमी है । वर्तमान में देश में 10 लाख लोगों पर केवल 18 जज हैं । वहीँ न्यायालय परिसरों में मूलभूत ढांचे की कमी , लंबे अवकाश व संचार और तकनीकों की कमी भी एक समस्या है । भारत में वाद सुलझाने के लिए कोई तय सीमा नहीं है जबकि अमरीका में यह 3 साल तय है । सामान्य व गंभीर मामले का अलग न होना , वकीलों के खर्च , प्रक्रिया की जटिलता आदि भी कुछ समस्याएं हैं ।

उपाय — न्यायिक विलम्ब को कम करने के लिए जजों और लोक व ग्राम अदालतों की संख्या को बढ़ाया जाना चाहिए । वहीँ जजों की कार्यावधि बढ़ानें , जजों व कर्मचारियों की रिक्त सीटें भरने के काम में तेज़ी लाई जानी चाहिए । सामान्य व गंभीर मामलों का बंटवारा करना चाहिए । न्यायलयों को तकनीक से परिपूर्ण व ज्यादा से ज़्यादा फास्टट्रैक कोर्ट की स्थापना की जानी चाहिए । इसके अलावा वकीलों के अपीलीय अधिकारों पर एक हद के बाद अंकुश लगाए जाने की भी ज़रूरत है। जिससे न्याय मिलने में ज्यादा विलम्ब न हो ।

भारतीय न्यायपालिका का अपना एक स्वर्णिम इतिहास रहा है । आज भी देश के किसी इंसान के साथ जब कोई अन्याय होता है तब वो कोर्ट की ओर देखता है। लेकिन वर्तमान में इसकी ओर उठती उंगलियां बुरे संकेत देती हैं । सरकार तथा न्यायालय दोनों का कर्तव्य है कि जल्द से जल्द इन समस्याओं का समाधान करें। जिससे लोगों को कम विलम्ब और अधिक पारदर्शिता के साथ जल्द से जल्द न्याय मिल सकें और उनका विश्वास न्यायलय पर फिर से सुदृढ़ हो ।

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