देश के कुछ सबसे पुराने विवादित मुद्दो मे से एक अनुच्छेद 370 के हटाएं जाने के 1 साल से ज्यादा का समय हो गया है ।
- देश की संसद ने 5 अगस्त 2019 को 370 को निष्क्रिय कर दिया गया था ।
- 370 के प्रावधानों के समाप्त होते ही अनुच्छेद 35(अ) भी स्वतः ही समाप्त हो गया ।
घटनाक्रम – 1947 मे राजा हरि सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किया था । इसके 2 वर्षों बाद 1949 में संविधान में 360(अ) जोड़ा गया जो आगे चलकर अनुच्छेद 370 बना । यह जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करता था । इसके तहत राज्य को अलग झण्डा , अलग संविधान व केन्द्र के कानूनो को लागू करने न करने जैसे कई अधिकार मिलते थे ।
इसे देश की संसद द्वारा 5 अगस्त 2019 को निष्क्रिय कर दिया गया था । जम्मू – कश्मीर को केन्द्रशासित प्रदेश तथा लद्दाख को भी राज्य से अलग करके एक नया केन्द्रशासित प्रदेश बनाया गया । अनुच्छेद 370 के प्रावधानो के समाप्त होते ही अनुच्छेद 35(अ) भी स्वतः ही समाप्त हो गया। यह 370 का ही एक हिस्सा था जो राज्य को इसके स्थाई व अस्थाई नागरिकों के बीच भेद करने का अधिकार देता था । इसे साल 1952 मे राष्ट्रपति के एक अध्यादेश मात्र से संविधान में सम्मिलित किया गया था। इस कारण यह अनुच्छेद शुरु से ही विवादो मे था ।
लोगों की राय – अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय किए जाने के विषय पर इसके पक्ष व विपक्ष में अपनी – अपनी राय हैं ।
कुछ लोग इसे देश को जम्मू – कश्मीर से जोड़ने वाला पुल व उनका हक़ बताया । उन्होनें इस कदम को उनके साथ धोखे की संज्ञा दी। तो वहीं कई लोग इस कदम को ऎतेहासिक बता रहें हैं । उनके अनुसार यह अनुच्छेद छल से लागू किया हुआ व अलगाववाद को बढावा देने वाला था । गौरतलब है कि इसे लागू करते समय संविधान संशोधन की प्रक्रिया नहीं अपनाई गयी थी ।
इसे राज्य में आतंकवाद , भ्रष्टाचार व पिछड़ेपन का प्रमुख कारण भी माना जाता रहा था । इस अनुच्छेद के कारण राज्य में RTI , CAG , आरक्षण , पंचायती राज जैसी कई योजनाएं लागू नहीं थी। इस कारण अन्य राज्यों के मुकाबले ज्यादा फण्ड मिलने के बावजूद भी राज्य पिछड़ेपन व अलगाववाद का शिकार बना रहा। इसी कारण राज्य में निवेश भी लगभग शून्य ही रहा ।
वर्तमान परिस्थिती और भविष्य – अनुच्छेद 370 के समाप्ति के बाद से राज्य में विकास कार्यौं मे तेजी शुरु हुई है । अमूल और कई अन्य कंपनियों ने हजारों करोड़ के निवेश का भी ऐलान किया है । लेकिन इन कार्यों कि राह मे अब भी कश्मीर में सक्रिय मिलीटेंट बड़ी चुनौती हैं। मुठभेड की खबरें अब भी आए दिन आती रहती हैं ।
कश्मीर मे स्थिरता लाने के लिए आज तक कई प्रयास किएं गएं। इसका पहला उदाहरण खुद 370 ही था। इसके बाद की सरकारों की तमाम कोशिशें हो या स्व. वाजपेयी जी की कश्मीरीयत – जम्हूरीयत और इंसानियत की नीति। या वर्तमान प्रधानमंत्री की गोली नहीं गले लगाने की नीति। इनमें से कोई भी कश्मीर मे स्थाई शांति लाने मे कामयाब साबित नहीं हुएं हैं। इसके बाद इस नए कदम से उम्मीदें लगाई जा रहीं हैं । 370 के हटने के बाद सरकार को राज्य मे अपनी योजनाएं लागू करने मे भी आसानी मिल चुकी हैं। लेकिन अब भी राज्य मे एक ऐसा वर्ग है जो 370 हटने से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है । उन्हे साथ लाने की जरुरत है । क्योकि यह एक लम्बी प्रक्रिया होगी इसलिए सरकार को अब कश्मीर में विकास व विश्वास की एक नई नीति के साथ कार्य करने की ज़रुरत है। जिससे कश्मीर मे जारी अशांती का दौर ख़त्म हो और राज्य का भविष्य उज्जवल हो सके ।