Thursday, July 25, 2024

क्या विलुप्त हो जाएंगे अख़बार ?

2013 में यूएन के बुद्धिजीवी फ्रांसिस गैरी ने कहा था कि दुनिया से 2040 तक अख़बार पूरी तरह विलुप्त हो जाएंगे। ऐसे ही दावे कई बार अन्य लोगों ने भी किये । अगर वर्तमान परिस्थितियों को देखें तो यह बात सच होती नजर आ रही है ।

  • डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रचलन को मुख्यत: जिम्मेदार माना जाता है ।
  • कोरोना संकट में अखबारों के वितरण बंद होने से यह समस्या और प्रभावी हो गई है ।

दुनिया में रेडियो के लगभग समाप्ति के बाद अब पारंपरिक मीडिया के एक और साधन अखबार पर भी बड़ा संकट मंडराने लगा है। इसका मुख्य कारण घटती व्यूअरशिप और डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभुत्व को बताया जाता है ।

हाल के दिनों में डेक्कन हेराल्ड के संस्करण , डीएनए , डीबी पोस्ट जैसे कई अखबारों के ऊपर ताला लटक गया है। कोरोना संकट में अखबारों के वितरण बंद होने से यह समस्या और प्रभावी हो गई है । वहीँ मीडिया के एक और साधन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के भी कई न्यूज चैनल्स बंद हुए हैं।

देश के भीतर अख़बारों के घटते व्यूअरशिप की बात करें तो दैनिक जागरण ने 2019 के पहली तिमाही के मुकाबले तीसरी तिमाही में अपने 13.6 % रीडर ख़ो दिए। वहीँ हिंदुस्तान अख़बार ने इतने ही समय में 21 % रीडर गंवाएं । अन्य अखबारों का भी हाल कमोबेश ऐसा ही रहा । यह संकट सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य कई देशों में भी हावी है ।

इस संकट की वजहों कि बात करें तो सबसे पहला और बड़ा कारण डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रचलन को ही माना जाता है । देश दुनिया में इंटरनेट, डिजिटल और सोशल मीडिया की पहुंच , तत्काल तथा कम समय में ख़बर की जानकारी । वो भी एक नही कई प्रकाशनों के द्वारा मिलने से लोग अब अखबारों से दूरी बनाते हुए दिखाई पड़ते हैं । इसके अलावा अख़बारी कागज़ों की बढ़ती कीमत , उनपर ज़्यादा टैक्स , राजस्व में कमी व छपाई में ज्यादा लागत जैसी भी कई समस्याएं हैं ।

जानकारों की माने तो अब भी अख़बारों पर आए इस संकट को रोका जा सकता है । अख़बार वितरण के इंफ्रास्ट्रक्चर को सही कर के और उनकी पहुंच आसान तथा सुदूर क्षेत्रों तक बना कर बिक्री को बढ़ाया जा सकता है । अख़बारी कागज़ो पर टैक्स में कटौती तथा सब्सिडी देकर उनकी आर्थिक रूप से मदद भी की जा सकती है । इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण घटक कंटेंट को बेहतर बनाकर संकट को टाला जा सकता है । क्योंकि डिजिटल मीडिया में फ़ेक न्यूज तथा अन्य कई समस्याएं भी है जो इसे कमज़ोर बनाती हैं।

गौरतलब है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के आगमन के वक्त भी अख़बारों पर संकट की बात आई थी । लेकिन अपने कंटेंट के दम पर ही आज तक यह टिका रहा । अगर उपरोक्त समस्याओं को सुलझा लिया जाए तो अख़बारोँ के ऊपर आए इस संकट को भी टाला जा सकता है ।

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