इन दिनों पूरी दुनिया में श्रम सुधारों को लेकर अलग – अलग विद्वानों व समूहों द्वारा आवाजें उठाई जा रही है। ऐसे में भारत भी इसमें सुधार कर के दुनिया में एक अग्रणी भूमिका निभा सकता है। अब वक्त आ गया है कि हम अपनी जनता से काम करवाएं ना की मजदूरी।
कुछ समय पहले देश की संसद ने न्यूनतम मजदूरी बिल पास किया । इसे सरकार अपनी बड़ी उपलब्धि बता रही है , वहीँ कई संगठन और विद्वानों ने इस बिल में कई खामियां बताई हैं जिनमें सुधारों की आवश्यकता है ।
इस बिल में चार पुराने श्रम कानूनों- पेमेंट ऑफ वेजेस एक्ट (1936), मिनिमम वेजेस एक्ट (1948), पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट (1965) और समान पारिश्रमिक एक्ट (1976) को शामिल किया गया है ।
कई मजदूर संगठन इस बिल का इसलिए भी विरोध कर रहें हैं। क्योंकि इस बिल के अनुसार मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी दर 178 रुपए प्रतिदिन और 4628 रूपए प्रतिमाह तय है। जो कि देश में एक आम इंसान के तथा उसके परिवार के दैनिक या मासिक जरूरतों तथा खर्च को देखते हुए काफ़ी कम प्रतीत होता है।
वहीं अगर देश के संगठित क्षेत्र की नौकरियों पर भी नज़र डालें तो वहां भी कई समस्या हैं। आम तौर पर कंपनियों द्वारा 8 घण्टे के बजाए 9 से 10 घंटे तक काम लिया जाना , और तो और घर से भी काम करवाने की शिकायतें रहती हैं ।
लोग अपनी क्षमता से ज्यादा काम की वजह से लगातार किसी न किसी बीमारी का शिकार होते चले जा रहे हैं। वहीँ इन दिनों काम के दवाब में कई कामगारों की मौत की भी ख़बरें प्रकाश में आईं हैं ।
कुछ वर्ष पहले भारतीय चिकित्सा शोध परिषद (आईसीएमआर) की एक शोध में पता चला कि भारत के लगभग 19.7 करोड़ लोग किसी न किसी मानसिक रोग से ग्रसित हैं। ऐसा बिल्कुल कह सकते हैं कि इनमें एक बड़ा हिस्सा कामगारों का भी है ।
अगर हम इन समस्याओं के समाधान की बात करें की तो कई उपाय हैं ,जैसे कि देश में श्रम कानून मजदूर संगठंनो के साथ चर्चा कर के बनाएं व सुधारें जाएं।
कुछ अन्य उपायों की बात करें तो एक बड़ा दूरगामी उपाय यह भी है कि देश में कार्य दिवस की संख्या सप्ताह में 4 दिन और कार्य के घंटे 8 से घटाकर 6 घंटे तक कर दिया जाएं ।
आज हमारी सरकारें युवा पीढ़ी को लगातार समाज में योगदान देने को प्रोत्साहित कर रही हैं । ऐसे में अगर कार्य के दिन और अवधी कम कर दिएं जाएं तो सरकार की ये पहल काफी असरदार हो सकती है । वहीँ अगर सरकार कंपनियों के साथ मिलकर यह पहल शुरू करें की हफ्ते में एक दिन उनके कर्मियों को समाज में अपना कुछ योगदान देना हैं । वो कार्य कुछ भी हो उदाहरण स्वरूप पौधरोपण , स्वच्छता , गरीब मुहालों में स्वास्थ्य शिक्षा तथा स्थितियों का निरीक्षण आदि। वहीं कर्मियों के उत्साहवर्धन के लिए उन्हें उनके काम के लिए बोनस तथा अन्य उपहार भी दिएं जाएं ।
हाल ही में जापान में माइक्रोसॉफ्ट कंपनी ने अपने कर्मचारियों के लिए हफ्ते में 4 दिन कार्य का नियम रखा। इसके परिणामस्वरुप कर्मचारियों की उत्पादकता में 41 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखी गई। इस उदाहरण से कंपनियों को घाटा होने की समस्या का समाधान भी प्राप्त होता है। क्योंकि अगर उत्पादकता बढ़ती है तो कंपनी का मुनाफा भी निश्चित है।
आज देश लगातार वैश्विक ख़ुशी सूचकांक में नीचे चला जा रहा है। बेरोजगारी समस्या बढ़ रही है, कामगारों को वेतन काफ़ी कम मिल रहा है। लोग अपने परिवार को खुद को काफी कम समय दे पा रहे हैं , समाज के प्रति जवाबदेही कम हो रही है। ऐसी स्थिति में अगर सरकार उपरोक्त सुधारों को लागू करती है तो निश्चित ही यह एक बड़ा और कारगर सुधार माना जाएगा। और अगर यह सुधार भारत जैसे देश द्वारा लाया जाए तो यह कदम पूरी दुनिया में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। शायद वक़्त आ गया है कि भारत विश्वगुरु बन कर दुनिया को यह मार्ग दिखाए की अपने लोगो को किस तरीके से एक बेहतर जीवन दिया जा सकता है ।