किसी भी देश में नागरिकों को मिलने वाले अधिकार व सुविधाओं में पारदर्शिता एक महत्वपूर्ण घटक माना जाता है। यह उस लोकतंत्र तथा जनता को और ज्यादा मजबूत और जागरूक बनाता है । भारत का संविधान भी यही कहता है कि देश में लोकतंत्र और संविधान की असल शक्ति जनता में ही निहित है ।
RTI का इतिहास
इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए साल 2005 में भारत सरकार ने देश की जनता को RTI यानी सूचना के अधिकार का कानून प्रदान किया था। ताकि इसकी मदद से अफ़सरशाही , प्रशासन तथा उनके कामकाज को पारदर्शी और उन तक जनता की पहुंच को भी सुलभ बनाया जा सकें।
इस कानून के अनुसार देश का कोई भी नागरिक देश के मंत्रालयों विभागों आदि से सूचना प्राप्त करने का अधिकार रखता हैं। इस कानून के अंतर्गत देश के 2200 विभागों को रखा गया है। इनमे राज्य , केंद्र , पीएमओ , सीएजी , सहित सीजेआई का ऑफिस भी शामिल है।
इस कानून के तहत भारत का नागरिक देश के किसी भी विभाग से सुचना प्राप्त करने का अधिकार रखता है। जिसे उस विभाग को 30 दिनों के भीतर देना पड़ेगा। वहीं जीने के अधिकार के मामले में 48 घंटे के अंदर जानकारी देनी पड़ेगी।
इसके अंतर्गत 1 मुख्य सूचना आयुक्त व 10 सूचना आयुक्त होते हैं । ठीक यही संख्या राज्यों के मामले में भी होती है ।
घटना
हाल ही में संसद द्वारा RTI संशोधन अधि. 2020 पास किया गया। इसे लेकर विपक्ष की पार्टियों ने अपना विरोध जाहिर किया है। इस संशोधन के अनुसार अब राज्य व केंद्र दोनों के सूचना आयुक्तों की नियुक्तियां उनके वेतन व सेवा शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय की जाएंगी। केंद्र की इस कमिटी में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे। जबकि इस संशोधन से पहले सुचना आयुक्तों की नियुक्ति व सेवा शर्तें चुनाव आयोग के आयुक्तों के तर्ज पर की जाती थी ।
पक्ष – विपक्ष
विरोधी दलों का कहना है कि सरकार सूचना के कानून को कमजोर कर रही है, जिसके बुरे परिणाम सामने आएंगे। वहीं इसके बचाव में सरकार का कहना है कि इस कानून को तब काफी हड़बड़ी में लाया गया था जिसमें कई सुधार जरूरी थे। यह एक कानून/अधि. है, जबकि चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है।
इसलिए दोनों की शर्तों व कार्यान्वयन आदि में स्पष्टता ज़रूरी थी। सरकार ने कहा कि वह RTI कानून को और ज्यादा संस्थागत , व्यवस्थित , और परिणामोन्मुखी बनाने का प्रयास कर रही है। RTI को कमजोर करने के आरोप पर सरकार ने कहा कि वह RTI के धारा 27 में परिवर्तन कर रही है, जबकि इसकी स्वायत्तता व स्वतंत्रता धारा 12(3) में है।
जरूरी कदम और भविष्य
सरकार ने भले ही विपक्ष के आरोपों का जवाब दे दिया हो व RTI को परिणामोन्मुखी बनाने पर जोर दिया हो। लेकिन अब भी इसकी राह में RTI कार्यकर्ताओं की हत्या , व्हिसल्ब्लोवर कानून का सही से पालन न होना , विभागों में कर्मचारियों की कमी जैसी कई समस्याएं है। वहीं 1923 का Official secret act भी इसे कमजोर बनाता है।
ध्यान देने वाली बात है कि RTI को दुनिया के कुछ सबसे बेहतर कानूनों में से एक की संज्ञा दी जाती है। इसपर सरकार का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण भविष्य में नकारात्मक प्रभाव भी डाल सकता है । कुछ वर्ष पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने CBI को पिंजरे में बंद तोते की संज्ञा दी थी जो इसका एक उदाहरण है । इसलिए सरकार को ऐसे प्रावधान करने चाहिए जिससे RTI की स्वायत्तता अक्षुण्ण बनी रहे ।