एक सप्‍ताह में 31,661 शिक्षकों की भर्ती करेगी यूपी सरकार

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उत्‍तर प्रदेश में शिक्षक की नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं के लिये बड़ी खबर है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को बुनियादी शिक्षा (बेसिक शिक्षा) विभाग से एक सप्ताह के भीतर 31,661 सहायक शिक्षकों की भर्ती करने के लिए कहा है।

राज्य सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि मूल शिक्षा विभाग ने सहायक अध्यापकों के 69,000 रिक्त पदों को भरने के लिए 6 जनवरी, 2019 को भर्ती परीक्षा आयोजित की थी।

7 जनवरी, 2019 के एक सरकारी आदेश के अनुसार, राज्य सरकार ने सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम प्रतिशत के रूप में 65% और पिछड़े व अन्य आरक्षित वर्गों के उम्मीदवारों के लिए 60% निर्धारित किया गया है।

”अब्राह्म अकॅार्ड” के बाद एक नई करवट लेगी मध्यपूर्व एशिया की राजनीति ।

मध्यपूर्व की जटिल राजनीति अब एक नया आयाम ले रही है । व्हाईट हाऊस के ओवल हाऊस में ऐतेहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया । यूएई व बहरीन ने अब इजराइल के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर व द्विपक्षीय सबंधों के ऐलान कर दिए हैं ।

  • 1979 में मिस्त्र और 1994 में जाॅर्डन ने इज़राइल के साथ समझौता किया था ।
  • भविष्य में 4-5 अन्य अरब देश इस समझौते का हिस्सा बन सकते हैं ।

अरब क्षेत्र में अब 4 ऐसे  देश हो गए हैं जिनके इज़राइल के साथ द्विपक्षीय सबंध हैं । इससे पहले 1979 में मिस्त्र और 1994 में जाॅर्डन ने इज़राइल के साथ समझौते किए थें । इस समझौते को करवाने में अमरीका की प्रमुख भूमिका रही है । इस समझौते को अब्राह्म अकॅार्ड / ‘वाशिंगटन-ब्रोकेड समझौता’ नाम दिया गया है । इस मौके पर अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि भविष्य में 4-5 अन्य अरब देश इस समझौते का हिस्सा बन सकतें हैं ।

समझौते की मुख्य शर्तें – इस समझौते के तहत यूएई और बहरीन इज़राइल के साथ अपने द्वीपक्षीय सबंध स्थापित करेंगे । इसके बदले में इज़राइल वेस्ट बैंक को को अपने हिस्से में जोड़ने की प्रक्रिया को निलंबित कर देगा । वेस्ट बैंक इज़राइल और जॉर्डन के के बीच स्थित है क्षेत्र है । इसे इज़राइल ने 1967 में 6 दिनों तक चले अरब – इज़राइल युद्ध में इसे अपने कब्जे में ले लिया था । इज़राइल ने भविष्य में इस क्षेत्र में बस्तियां बसानी शुरु की जिसपर समय – समय पर विवाद होता अाया है ।

समझौते की वजह – इज़राइल व अरब देश लगभग आधी से एक दुसरे के दुश्मन रहें हैं। लेकिन अब इनके एक साथ आने का प्रमुख कारण मध्यपूर्व में ईरान की बढ़ती सैन्य शक्ति और प्रभाव को बताया जा रहा है । ईरान के बढ़ते प्रभुत्व को देखते हुए क्षेत्र में एक अरसे से नए गठबंधन के कयास लगाए जा रहें थे । अरब देशों को एक नए तथा मजबूत सैन्य सहयोगी तो वहीं इज़राइल को भी एक नए बाज़ार की ज़़रूरत थी । इस समझौते के बाद दोनों की जरूरतें पूरी होेंगी।

प्रतिक्रियाएं – इस समझौते के बाद पूरी दुनिया से कई प्रतिक्रियाएं देखने को मिली है। लगभग सभी देशों ने इस समझौते पर ख़ुशी जताई है । भारत ने कहा कि – भारत हमेशा से ही मध्य पूर्व में शांति का पक्षधर रहा है और इस समझौते का स्वागत करता है । वहीं ईरान, तुर्की और पाकिस्तान ने इसका विरोध किया है और इसे फ़लिस्तीन के साथ धोख़ा बताया है। तुर्की ने भविष्य में यूएई के साथ संबंध ख़त्म करने की भी धमकी दी है , जबकि हास्यासपद बात ये है कि तुर्की उन सबसे शुरुआती देशों में से एक है जिसका इज़राइल के साथ द्विपक्षीय संबंध हैं ।

यूपी पंचायत चुनाव: निर्वाचन आयोग का 1 अक्टूबर से वोटर लिस्ट रिवीजन

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। आयोग के निर्देशों के अनुसार 1 अक्टूबर से यूपी में मतदाता सूची का पुनरीक्षण शुरू होगा। आयोग ने इसका विस्तृत कार्यक्रम जारी कर दिया है।

  • 1 अक्टूबर से 12 नवम्बर तक – बीएलओ द्वारा घर-घर जाकर गणना एवं सर्वेक्षण
  • 1 अक्टूबर से 5 नवम्बर तक- ऑनलाइन आवेदन करने की अवधि
  • 6 नवम्बर से 12 नवम्बर तक- ऑनलाइन प्राप्त आवेदन पत्रों की घर-घर जाकर जांच करने की अवधि
  • 13 नवम्बर से 5 दिसम्बर तक- ड्राफ्ट नामावलियों की कम्प्यूटराइज्ड लिस्ट तैयार करना
  • 6 दिसम्बर तक- ड्राफ्ट मतदाता सूची का प्रकाशन
  • 6 दिसम्बर से 12 दिसम्बर तक- ड्राफ्ट नामावली का निरीक्षण
  • 6 दिसम्बर से 12 दिसम्बर तक- दावे एवं आपत्तियां प्राप्त करना
  • 13 दिसम्बर से 19 दिसम्बर तक- दावे एवं आपत्तियों का निस्तारण
  • 29 दिसम्बर- निर्वाचक नामावलियों का जन सामान्य के लिए अंतिम प्रकाशन.

क्या वर्तमान समय में ख़त्म हो रही है दल बदल कानून की प्रासंगिकता ?

हाल के कुछ वर्षोंं में देश की राजनीति में जनता द्वारा चुने जा रहे प्रतिनिधियों के द्वारा बड़े स्तर पर दल बदलने की घटनाएं आम हो गई हैं । इन घटनाओं ने  देश “आया राम गया राम” की कहावत को एक बार फिर से चरितार्थ करना शुरू कर दिया है ।

  • संसद ने साल 1985 में 52वें संविधान संशोधन द्वारा दल बदल विरोधी कानून पारित किया था ।
  • 1999 में विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में गठबंधन पार्टियों को भी इस कानून के दायरे में लाने की सलाह दी ।

देश में एक बार फिर से चुनाव आने वाले हैं , लेकिन चुनाव के साथ ही इस बार कई सीटों पर उपचुनाव भी होंगे जिसका प्रमुख कारण कई प्रतिनीधियों द्वारा दुसरे पार्टियों में चले जाने के कारण सीटों का रिक्त होना है । अपने निजी हितों के लिए दल बदलने की कुप्रथा गलत तो है हीं और तो और एक तरीके से यह जनता के साथ सीधे सीधे धोख़े सा प्रतीत होता है । इसके अलावा इससे राजनितिक संकट , पैसों की बर्बादी और विकास कार्यों में रुकावटें भी पैदा होती हैं ।

दल बदल कानून — इस स्थिति से बचने के लिए ही देश की संसद ने साल 1985 में 52वें संविधान संशोधन द्वारा दल बदल विरोधी कानून पारित किया था । इस कानून के अनुसार किसी प्रतिनिधि को अपने राजनितिक दल की सदस्यता छोड़ने , निर्दलीय होते हुए किसी दल में शामिल होने , सदन में पार्टी के खिलाफ वोट करने या वोटिंग में भागीदारी न करने पर आयोग्य घोषित किया जा सकता है ।
इसके अलावा अगर किसी मनोनीत सदस्य के द्वारा भी 6 महीनें की समाप्ति के बाद किसी दल की सदस्यता ली जाती है तो उसे अयोग्य ठहराया जा सकता है । लेकिन किसी पार्टी के 2/3 विधायको के दल बदलने और विधानसभा अध्यक्ष के अपनी पार्टी से इस्तीफा देने के मामले को अपवाद रखा गया है । सदस्यों के अयोग्यता का फैसला अध्यक्ष ही करते हैं ।

असर — इस कानून के पारित होने के कुछ वक्त तक इसका असर देखने को मिला लेकिन समय गुज़रने तथा कानून पुराने होने के साथ साथ वही पुराने संकट नये रूप में फिर से सामने आने लगे हैं ।
इस कानून से कई बार राजनितिक संकटों से छुटकारा तो मिला लेकिन कई बार पार्टियों के द्वारा इस कानून की मदद से पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को कुचलने की घटनाएं सामने आती रही । कई बार पार्टी लाइन से अलग राय रखने वाले तथा आवाज उठाने वाले सदस्यों को इसका शिकार बनाया जाता रहा है । यह कहना बिलकुल सही होगा की जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि के ऊपर पार्टी के विचार हमेशा भारी पड़ते हैं । दुनिया के अनेक लोकतंत्रों में पार्टीयों के सदस्य अपने पार्टी के खिलाफ़ काफ़ी मुख़र होते हैं फिर भी पार्टी में बने रहते हैं । इसके अलावा भारत में कई बार अध्यक्ष की निषपक्षता पर भी सवाल उठते रहतें है जिस कारण सदस्य कोर्ट का रुख करतें हैं ।
वर्तमान समय में सरकारों पर संकट और सदस्यों को निशाना बनाना दोनों घटनाएं आम हो गयी हैं जिसके खिलाफ कई बार विवाद खड़े होते रहतें हैं ।

सुधार की मांग — इन समस्याओं पर 1990 में बनी दिनेश गोस्वामी समिति व चुनाव आयोग का मत है कि प्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराने का आ़ख़िरी फै़सला चुनाव आयोग की सलाह से राष्ट्रपति और गवर्नर के पास होना चाहिए । वहीँ 1999 में विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में गठबंधन पार्टीयों को भी इस कानून के दायरे में लाने की सलाह दी थी ।  केवल संकट के समय पार्टी के पक्ष में वोट न करने पर सदस्यों को अयोग्य करार देने की सलाह दी थी । इसके अलावा अयोग्य ठहराए जाने की अवधि को भी बढ़ाने की सलाह दी थी जिससे सदस्यों के मन में अपने स्वार्थ के लिए राजनीतिक संकट पैदा करने के खिलाफ डर बैठाया जा सके ।

दल बदल विरोधी कानून देश को राजनीतिक अस्थिरता से बचाने व कई अन्य बेहतर उद्देश्यों के लिए लाया गया था । लेकिन वर्तमान परिस्थिति देखें तो इसमें विद्यमान कमजोरी का पार्टी तथा सदस्य दोनों ही अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग करतें हैं । इसलिए वर्तमान समय की जरूरत है कि इसमें शामिल विसंगतियों को दूर किया जाए जिससे भारत के लोकतंत्र को और बेहतर बनाया जा सके ।

यूपी में कोरोना के 6846 नए मामले, कुल संक्रमितों की संख्या 3 लाख के पार

उत्तर प्रदेश में आज कोरोना वायरस संक्रमण के 6846 नए मामले सामने आए हैं। इसके साथ ही राज्य में कुल संक्रमितों की संख्या अब 3 लाख को पार कर चुकी है।
हालांकि राहत की बात यह है कि शनिवार को आए मामले पिछले दो दिन के केस से कुछ कम हैं। बीते दो दिन लगातार 7000 से अधिक मामले दर्ज हुए थे। शुक्रवार को प्रदेश में कुल 7016 तो गुरुवार को सर्वाधिक 7042 नए केस आए थे।

मिर्जापुर में आसमान से बरसी आफत, बिजली गिरने से 21 भैंसों की हुई दर्दनाक मौत

मिर्जापुर जिले में एक ऐसी आफत आ बरसी कि एक साथ ही 21 भैंसों की मौत हो गई। इससे इलाके में हड़कंप मच गया है।

मिली जानकारी के मुताबिक, अहरौरा नगर सहित आसपास के ग्रामीण अंचलों से बरसात के दिनों में पशुओं की भारी तादात चरवाहे जंगलों में चराने के लिए लेकर जाते हैं। शनिवार की दोपहर गरज बरस के साथ बूंदाबांदी होने लगी। इसी दौरान बिजली भी गिरी, जिसकी चपेट में आकर झरने के पानी मे बैठीं 16 भैंसे बुरी तरह से झुलस कर तड़पने लगी।
पशु पालक यह नजारा देख कुछ समझ पाते कि तभी फिर से वज्रपात हुआ और कुछ दूरी पर मौजूद पांच अन्य भैंस भी झुलस गईं।

पशुपालकों के सामने ही कुल 21 भैंसों ने तड़प कर दम तोड़ दिया। बिलखते पशुपालकों ने हादसे की सूचना स्थानीय पुलिस को दी। मौके पर पहुंचे उप निरीक्षक वीरेन्द्र सिंह ने राजस्व कर्मियों को घटना की जानकारी दी है।

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने पीसीएस 2018 के परिणाम किए घोषित, अनुज नेहरा ने किया टॉप

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPSC) ने पीसीएस 2018 के नतीजों की घोषणा कर दी है। कुल 988 पदों के लिए हुई इस भर्ती में 976 अभ्यर्थियों को अंतिम रूप से सफल घोषित किया गया है। पीसीएस 2018 में अनुज नेहरा ने टॉप किया है, जबकि संगीता ने दूसरा और ज्योति ने तीसरा स्थान प्राप्त किया है।

पीसीएस 2018 टॉपर 

रैंक                    नाम                             निवास
1                  अनुज नेहरा                  पानीपत, हरियाणा
2                   संगीता राघव                 गुरुग्राम, हरियाणा
3                   ज्योति शर्मा                   मथुरा, उत्तर प्रदेश
4                   विपिन कुमार                 जालौन, उत्तर प्रदेश
5                  कर्मवीर केशव                 पटना, बिहार

बता दें कि पीसीएस-2018 का इंटरव्यू बीते 25 अगस्त को पूरा हो चुका था, जिसके बाद से ही जल्द परिणाम घोषणा का इंतजार किया जा रहा था। पीसीएस-2019 की मुख्य परीक्षा 22 सितंबर से शुरू होनी है। पीसीएस-2018 की मुख्य परीक्षा इस बार संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा की तर्ज पर आयोजित की गई थी।

मध्यप्रदेश उपचुनाव: कांग्रेस ने जारी की 15 प्रत्याशियों की सूची

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मध्यप्रदेश की 27 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी ने प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी है। इसमें 15 नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने का फैसला किया गया है।

उम्मीदवारों की सूची
दिमनी- राघवेंद्र सिंह तोमर
अंबाह (सुरक्षित)- सत्यप्रकाश सिकरवार
गोहद (सुरक्षित)- मेवाराम जाटव
ग्वालियर- सुनील शर्मा
डबरा- सुरेश राजे
भांडेर- फूल सिंह बरैया
करेरा (सुरक्षित)- प्रगीलाल जाटव
बमोरी- कन्हैयालाल अग्रवाल
अशोकनगर- आशा दोहरे
अनूपपुर (सुरक्षित)- विश्वनाथ सिंह कुंजाम
सांची (सुरक्षित)- मदनलाल चौधरी
आगर (सुरक्षित)- विपिन वानखेड़े
हाटपिपल्या- राजवीर सिंह बघेल
नेपानगर  (सुरक्षित)- राम किशन पटेल
सांवेर (सुरक्षित)- प्रेमचंद गुड्डू

गौरतलब है कि 21 अगस्त को चुनाव आयोग ने कोरोना काल में देश में चुनाव कराने को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए थे। इसमें कहा गया था कि उम्मीदवार को नामांकन पत्र, शपथ पत्र और नामांकन से लेकर सिक्योरिटी मनी ऑनलाइन ही जमा करनी होगी।

वहीं, चुनाव कार्य को लेकर सभी व्यक्ति मास्क लगाएंगे। चुनाव से जुड़े हॉल, रूम या परिसर में प्रवेश के दौरान थर्मल स्कैनिंग की जाएगी। वहां सेनिटाइजर, साबुन और पानी की व्यवस्था की जाएगी। सभी को सामाजिक दूरी का पालन करना होगा। घर-घर जाकर पांच लोगों को संपर्क की अनुमति दी जाएगी।

क्या विलुप्त हो जाएंगे अख़बार ?

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2013 में यूएन के बुद्धिजीवी फ्रांसिस गैरी ने कहा था कि दुनिया से 2040 तक अख़बार पूरी तरह विलुप्त हो जाएंगे। ऐसे ही दावे कई बार अन्य लोगों ने भी किये । अगर वर्तमान परिस्थितियों को देखें तो यह बात सच होती नजर आ रही है ।

  • डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रचलन को मुख्यत: जिम्मेदार माना जाता है ।
  • कोरोना संकट में अखबारों के वितरण बंद होने से यह समस्या और प्रभावी हो गई है ।

दुनिया में रेडियो के लगभग समाप्ति के बाद अब पारंपरिक मीडिया के एक और साधन अखबार पर भी बड़ा संकट मंडराने लगा है। इसका मुख्य कारण घटती व्यूअरशिप और डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभुत्व को बताया जाता है ।

हाल के दिनों में डेक्कन हेराल्ड के संस्करण , डीएनए , डीबी पोस्ट जैसे कई अखबारों के ऊपर ताला लटक गया है। कोरोना संकट में अखबारों के वितरण बंद होने से यह समस्या और प्रभावी हो गई है । वहीँ मीडिया के एक और साधन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के भी कई न्यूज चैनल्स बंद हुए हैं।

देश के भीतर अख़बारों के घटते व्यूअरशिप की बात करें तो दैनिक जागरण ने 2019 के पहली तिमाही के मुकाबले तीसरी तिमाही में अपने 13.6 % रीडर ख़ो दिए। वहीँ हिंदुस्तान अख़बार ने इतने ही समय में 21 % रीडर गंवाएं । अन्य अखबारों का भी हाल कमोबेश ऐसा ही रहा । यह संकट सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य कई देशों में भी हावी है ।

इस संकट की वजहों कि बात करें तो सबसे पहला और बड़ा कारण डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रचलन को ही माना जाता है । देश दुनिया में इंटरनेट, डिजिटल और सोशल मीडिया की पहुंच , तत्काल तथा कम समय में ख़बर की जानकारी । वो भी एक नही कई प्रकाशनों के द्वारा मिलने से लोग अब अखबारों से दूरी बनाते हुए दिखाई पड़ते हैं । इसके अलावा अख़बारी कागज़ों की बढ़ती कीमत , उनपर ज़्यादा टैक्स , राजस्व में कमी व छपाई में ज्यादा लागत जैसी भी कई समस्याएं हैं ।

जानकारों की माने तो अब भी अख़बारों पर आए इस संकट को रोका जा सकता है । अख़बार वितरण के इंफ्रास्ट्रक्चर को सही कर के और उनकी पहुंच आसान तथा सुदूर क्षेत्रों तक बना कर बिक्री को बढ़ाया जा सकता है । अख़बारी कागज़ो पर टैक्स में कटौती तथा सब्सिडी देकर उनकी आर्थिक रूप से मदद भी की जा सकती है । इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण घटक कंटेंट को बेहतर बनाकर संकट को टाला जा सकता है । क्योंकि डिजिटल मीडिया में फ़ेक न्यूज तथा अन्य कई समस्याएं भी है जो इसे कमज़ोर बनाती हैं।

गौरतलब है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के आगमन के वक्त भी अख़बारों पर संकट की बात आई थी । लेकिन अपने कंटेंट के दम पर ही आज तक यह टिका रहा । अगर उपरोक्त समस्याओं को सुलझा लिया जाए तो अख़बारोँ के ऊपर आए इस संकट को भी टाला जा सकता है ।