Friday, July 26, 2024

यूएस – तालिबान वार्ता और अफ़गानिस्तान का भविष्य ।।

करीब दो दशकों से अफ़गानिस्तान की धरती पर जारी ख़ून – खराबा अब धीरे धीरे ही सही लेकिन शांति की ओर बढ़ता दिखाई पड़ रहा है । पिछले दिनों मार्च के महीने में क़तर में 10 वें US – Taliban शांति वार्ता का आयोजन हुआ। इसमें 50 देशों ने हिस्सा लिया । भारत की ओर से क़तर में राजदूत पी. कुमारन भी इसमें शामिल हुए थें ।

  • 2001 में हुए 9/11 हमले के आरोपियों को अमरीका को न सौंपने के जवाब में 2003 में अमरीका व नाटो सेनाओं ने अफगानिस्तान पर हमला बोल दिया था ।
  • भारत ने अफ़गानिस्तान के विकास के लिए अरबों का निवेश कर रखा है जिस पर ख़तरा आ सकता हैं ।

अमेरिका के लिए लगभग सिरदर्द बन चुके अफ़गानिस्तान में जारी हिंसा व वहां फंसे अमरीकी व सहयोगी देशों के सैनिकों की घर वापसी के नज़रिए से यह वार्ता काफ़ी महत्वपूर्ण मानी जा रही है ।

इतिहास — 2001 में हुए 9/11 हमले के आरोपियों को अमरीका को न सौंपने के जवाब में 2003 में अमरीका व नाटो सेनाओं ने अफगानिस्तान पर हमला बोल दिया था । अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज़ तालिबान की सेना 1 हफ़्ते में ही युद्ध हार गई थी । उनमें से कई मारें गएं व कइयों ने पाकिस्तान भागकर और पर्वतों में छुपकर अपनी जान बचाई ।

लेकिन समय बीतने के साथ – साथ अमरीका का ध्यान ईरान की ओर गया। इसके अलावा अमरीकी – अफ़गानी सैनिकों के दमनकारी नीतियों के कारण तालिबान अपनी शक्ति को वापस जुटाने में कामयाब रहा । वर्तमान में अफगानिस्तान के आधे या उससे ज्यादा भाग पर तालिबान का कब्ज़ा है । उसे वहां अच्छा खासा समर्थन भी प्राप्त है । देश में तालिबान और अफ़गान सेना के बीच लम्बे समय से संघर्ष ज़ारी है ।

पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के शासन में भी शांति स्थापित करने की कई कोशिशें की गई थी। जिसका उदाहरण दोहा मे स्थित राजनयिक मिशन भी है । इसके अलावा इसी दौरान अफ़गानिस्तान में काम्बैट मिशन को बंद करवा कर केवल अफ़गान सेना को ट्रेनिंग देने का फ़ैसला भी लिया गया था । अफ़गानिस्तान से अमरीकी सैनिकों की सकुशल वापसी राष्ट्रपति ट्रम्प के प्रमुख चुनावी वादों में से एक था ।

वार्ता की शर्तें – इस वार्ता के अनुसार अगर तालिबान देश में शांति स्थापित कऱता है तो शुरु के 135 दिनों में अमरीका अपनी फौज़ की संख्या 14000 से कम कर के 9600 कर देगा । वहीं अगले 14 महीनों मे पूरी अमरीकी सेना वापस चली जाएगी । इसके बदले मे तालिबान किसी भी आतंकी गतिविधि मे शामिल नहीं होगा । न ही अफ़गानिस्तान की ज़मीन को इसके लिए प्रयोग होने देगा। गौरतलब है कि ISIS की बढती सक्रियता से अमरीका , रुस व स्वयं तालिबान भी चिंतित हैं ।

भारत का पक्ष – भारत हमेशा से ही अफ़गानिस्तान में शांति का पक्षधर रहा है। लेकिन इस पूरी वार्ता पर भारत ने चिंता भी ज़ाहिर की है । भारत अफ़गानिस्तान मे लोकतंत्र का बड़ा समर्थक रहा है। लेकिन इस वार्ता में अफ़गानिस्तान सरकार को शामिल ना किए जाने , महिलाओं की आज़ादी, खेल व संस्कृति आदि बातों पर स्थिति साफ़ न होने पर भारत ने सवाल उठाएं हैं। भारत ने अफ़गानिस्तान के विकास के लिए अरबों का निवेश कर रखा है जिस पर ख़तरा आ सकता है ।

भविष्य – इस वार्ता से ऊपरी तौर पर शांति तो दिखती है लेकिन अब भी इसमे कई कमियाॅं हैं। तालिबान द्वारा अफ़गानिस्तान की चुनी हुई सरकार को मान्यता न देना , लोकतंत्र की स्थिति साफ़ न करना भविष्य के लिए बुरे संकेत है। इन सभी समस्याओं को जल्द से जल्द सुलझाया जाना चाहेिए ।

 

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