प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में आयोजित होने वाला कुम्भ मेला विश्व का विशालतम स्वतः स्फूर्त समागम एवं तीर्थोत्सव है। पौराणिक कथानुसार देवता और दैत्य अलौकिक क्षीर सागर के मंथन में अमृत प्राप्ति के लिए एकत्र हुए तथा यह निश्चित किया कि समुद्र मंथन से निकलने वाले पदार्थों को वे आपस में बांट लेंगे।
इस मंथन में पौराणिक मंदराचल (पर्वत) को मथनी और नागों के सम्राट वासुकी को मथने वाली रस्सी की तरह प्रयुक्त किया गया। कहा जाता है कि दस हजार वर्षों तक देव दानव के सागर मंथन के फलस्वरुप अन्य रत्नों के साथ ही अमृत से भरा कलश भी प्राप्त हुआ। ‘अमृत पीने के बाद दानव अमर हो जायेंगे तब संसार का क्या होगा?’
इस चिन्ता से देवताओं ने अमृत-कलश को छिपाने का निर्णय लिया। इसके लिए देवों और दानवों के बीच संघर्ष चला, जिसके दौरान देवताओं के राजा इंद्र का पुत्र जयंत पहले स्वर्ग के आठ स्थानों पर तथा फिर पृथ्वी पर जहां-तहां अमृत कलश को छिपाने के लिए भागता रहा।
पुराणों के अनुसार इस संघर्ष से इंद्र के पुत्र जयंत ने अमृत कलश को हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक की भूमि पर रखा जहां अमृत-कलश की कुछ बूंदें भूमि पर गिरीं और इन स्थानों को निश्चित नक्षत्रीय दश में सदा-सदा के लिए अमरत्व प्रदान करने वाली दैवी ऊर्जा से समृद्ध कर गयीं। इन्हीं स्थानों पर कुम्भ मेलों का आयोजन किया जाता है।