ऐसा माना जाता रहा है कि किसी भी मुद्दे का एक अंत या समाधान ज़रूर होता है । लेकिन देश में आरक्षण एक ऐसा सदाबहार मुद्दा है जो हमेशा ही अलग अलग स्वरूप , संशोधन या फैसलों की वजह से चर्चा में बना ज़रूर रहता है ।
- सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया की प्रोमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है ।
- देश में वर्तमान में सचिव स्तर पर सिर्फ 4 अधिकारी SC – ST वर्ग से आते हैं ।
चाहे आरक्षण को जारी रखने या ख़त्म करने की बात हो या समय के साथ – साथ अन्य जातियों द्वारा आरक्षण की मांग या फिर 10% सवर्ण आरक्षण। ये सभी चर्चा में बने रहें है । हाल ही में इन मुद्दों के साथ प्रमोशन में आरक्षण भी एक नए अध्य्याय के रूप में जुड़ गया है ।
यूं तो प्रोमोशन में आरक्षण का विवाद वर्षों पुराना है। लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 2012 ने उत्तराखंड सरकार द्वारा दायर याचिका में फैसला सुनाते हुए निर्णय दिया की प्रोमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। इसे लागू करना या न करना राज्य सरकार के विवेक पर निर्भर है । इस फ़ैसले के बाद से ही यह मुद्दा फिर से गर्म हो गया है ।
इस मुद्दे की शुरुआत की बात करें तो यह सन् 1973 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रमोशन में आरक्षण देने शुरू हुआ था। साल 1992 में इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था । इसके बाद साल 1995 में केंद्र सरकार ने 1995 में आरक्षण के पक्ष में 82वां संविधान संशोधन किया था । वहीँ 2002 में 85वें संशोधन द्वारा इसमें वरिष्ठता को भी जोड़ दिया गया ।
2006 में इसके ख़िलाफ़ दायर याचिका ( नागराज vs भारत सरकार ) पर फ़ैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे सही ठहराया। लेकिन इसके लिए SC – ST को समाज व शिक्षा में पिछड़ा होना , पदों पर प्रतिनिधित्व न होना , व प्रशासन चलाने में बाधा न पड़ने को जरूरी बताया ।
2012 में उत्तराखंड PWD भर्ती में इस आरक्षण के न होने की वजह से यह मुद्दा हाई कोर्ट पहुंचा जहाँ कोर्ट ने क़ानून बनाने की सलाह दी । इसके बाद 7 पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया था । वहीँ 2018 में आरक्षण के मुद्दे से जुड़े जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी गुप्ता वाद में सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण में SC-ST के पिछड़ेपन के डाटा की ज़रूरत को ख़त्म कर दिया था ।
वर्तमान परिस्थिति – कोर्ट के फैसले के अनुसार संविधान का 16 (4) व 16 (4) (अ) SC – ST को प्रोमोशन में आरक्षण का अधिकार तो दिया है लेकिन इसका फ़ैसला राज्य सरकारें ही करेंगी ।
प्रोमोशन में आरक्षण के पक्ष में लोगों का कहना है कि अब भी नौकरियों में ऊपरी स्तर पर काफ़ी पक्षपात है। इस कारण वहां SC – ST वर्ग का प्रतिनिधित्व काफ़ी कम है । उदाहरण के तौर पर देश में सचिव स्तर पर सिर्फ 4 अधिकारी SC – ST वर्ग से आते हैं । वहीँ यह वर्ग अब भी समाज में बड़े स्तर पर भेदभाव का शिकार हैं ।
वहीँ इसके विपक्ष में लोगों का तर्क है की पहले से समान स्तर पर मौजूद लोगों में यह आरक्षण भेदभाव पैदा करने का काम करेगा। इससे प्रशासनिक दक्षता पर भी प्रभाव पड़ेगा ।
आगे की राह — पदोन्नति में आरक्षण भविष्य में एक बड़े विवाद की स्थिति उत्पन्न कर सकता है । देश में आरक्षण लाने का मूल मकसद समानता को बढ़ावा देना था जो की 72 सालों में अब तक ढ़ंग से सफ़ल नहीं हो पाया है । इसलिए समय की यह मांग दिखती है कि देश में आरक्षण की गहन समीक्षा कर इसे परिणामोन्मुखी बनाया जाए । वहीँ समाज में समानता व एकरूपता को बढ़ावा देने हेतु नए विकल्पों की भी तलाश की जाए ।