साल 2019 जलवायु संकट की नज़र से काफ़ी बुरा साल साबित रहा । अगस्त महीने में दुनिया के सबसे बड़े जंगल अमेज़न में आग लगी। तो वहीँ साल के अंत में ऑस्ट्रेलिया मे बुशफायर की भयानक आग की वजह से अनगिनत पशु पक्षियों जीव जंतुओं की मौत हो गई ।
- अमेज़न जंगल अकेले पूरी दुनिया में 20 % ऑक्सीजन का योगदान देता है ।
- बुशफ़ायर में लगभग 50 cr से ज़्यादा जीव – जंतु मारे गए और 28 नागरिकों / कर्मचारियों की भी मौतें हुई ।
ध्यान देने वाली बात है कि कई विशेषज्ञों और जानकारों ने इस आग को प्राकृतिक नहीं बल्कि मानवनिर्मित दुर्घटना की संज्ञा दी है । इसका प्रमुख कारण दुनिया में जलवायु परिवर्तन की समस्या है । अमेज़न की जंगलों में लगी आग का एक कारण बड़े स्तर पर पेड़ो की कटाई को बताया गया है। इस आग को लेकर ब्राजील के राष्ट्रपति बोलसेनारो को काफी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा । बोलसेनारो शुरू से ही अमेज़न के जंगलों की कटाई और उसके संसाधनों के दोहन के हिमायती रहें हैं ।
यह जंगल ब्राजील के 40 % भाग में फैला है और अकेले पूरी दुनिया के 20 % ऑक्सीजन का योगदान देता है । जंगल में आग कई बार लगती रही है। लेकिन साल 2018 के मुकाबले 2019 में आग लगने की 72 हज़ार से ज्यादा घटनाएं हुई हैं। इस कारण बार – बार सरकार पर उँगलियां उठ रहीं हैं ।
वहीं ऑस्ट्रेलिया बुशफायर की बात करें तो वहां भी आग लगने का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन ही रहा । 2019 में देश में इतिहास का सबसे बड़ा सुखा पड़ा और शुष्क हवाओं ने भी आग फ़ैलाने में मदद की । इस आग में लगभग 50 cr से ज़्यादा जीव – जंतु मारें गएं और 28 नागरिकों / कर्मचारियों की भी मौतें हुई । ऑस्ट्रेलिया के पीएम स्कॉट मोरिसन को भी इसके लिए काफी आलोचनाएं झेलनी पड़ी। देश से कार्बन उत्सर्जन टैक्स को ख़त्म करने को लेकर भी उनकी आलोचना हुई ।
इस घटना के असर की बात करें तो इसने एक बार फिर से दुनिया का ध्यान जलवायु संकट की तरफ़ खींच लिया है । जिसपर दुनिया में कई बड़े सम्मलेन और बातें होती तो आई हैं लेकिन उनका असर ना के बराबर दिखा है।
अब तक 1991 में रियो का जलवायु सम्मलेन , 1997 का क्योटो प्रोटोकॉल व 2015 का पेरिस जलवायु संधि हुई हैं। इन सब में कई फैसले और कदम उठाएं गएं। लेकिन अमरीका जैसे बड़े देशों के समझौते के बाहर होने और अन्य देशों की सुस्ती से इसका व्यापक असर पड़ता नहीं दिखा है ।
भारत तथा अन्य कई देश अपने कार्बन उत्सर्जन में कमी कर रहें हैं। लेकिन वैज्ञानिकों का दावा है कि पृथ्वी के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक नियंत्रित रखने का लक्ष्य अब नामुमकिन हो गया है । वहीँ पेरिस संधि से अमरीका के बाहर होने के बाद होने वाली आर्थिक दिक्कतें भी इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मुश्किल पैदा करेगी ।
भले ही 1.5 डिग्री का लक्ष्य अब नामुमकिन सा हो गया हो, लेकिन अब भी दुनिया में प्रयासों को और ज़्यादा तेज़ी देने की ज़रूरत है । अधिक से अधिक वृक्षारोपण कर के , कार्बन उत्सर्जन व प्रदूषण कम से कम रख के और पर्यावरण के प्रति जागरूकता फ़ैलाकर स्थिति को अब भी बेहतर किया जा सकता है ।