Sunday, December 22, 2024

क्या है नक्सलवाद की समस्या की जड़ और इसके निराकरण के उपाय ??

देश की आज़ादी के करीब 1.5 दशक बाद 1969 से शुरू हुई नक्सलवाद की समस्या आज भी देश की सबसे प्रमुख आंतरिक समस्या के रूप में मौजूद है । 2008 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने भी इसे देश के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बताया था ।

  • 2009 से 2013 के बीच देश भर में 8782 तो वहीँ 2014 से 2018 तक 4969 नक्सल घटनाएं देखने को मिली थी ।
  • 2017 में सरकार ने इस समस्या से निबटने को SAMADHAN नीति का प्रारंभ किया ।

समय – समय पर गाहे बगाहे नक्सली देश के किसी न किसी कोने में घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं। कोरोना संकट के समय में भी इनकी ओर से कई छोटी घटनाएं देखने को मिलती रहीं हैं । कई बार हमारे जवान इनकी साजिशों को नाकाम कर देते हैं तो वहीँ कई बार नक्सली बड़ी वारदातें करने में कामयाब हो जातें हैं । कुछ ही समय पहले छत्तीसगढ़ ,महाराष्ट्र आदि राज्यो में हुई नक्सलवादी घटनाएं इसका उदाहरण हैं ।
आंकड़ो की बात करें तो  2009 से 2013 के बीच देश भर में 8782 तो वहीँ 2014 से 2018 तक 4969 नक्सल घटनाएं देखने को मिली थी ।

इतिहास – नक्सलवाद का जन्म दार्जलिंग के नक्सलबाड़ी नाम के एक गांव से हुआ था । जमींदारों द्वारा उत्पीड़न के विरोध में सत्ता के ख़िलाफ़ खड़ा हुआ यह आंदोलन माओ की नीति से प्रेरित था। इसलिए इन्हें माओवादी भी कहा जाता है । इसका नेतृत्व मुख्य रूप से चारु मजूमदार , कानू सान्याल , व कन्हाई चटर्जी द्वारा किया गया था ।

वर्तमान स्थिति – देश के कई राज्य जैसे झारखण्ड , छत्तीसगढ़ , पश्चिम बंगाल , महाराष्ट्र , उड़ीसा आदि नक्सलवाद की समस्या से पीड़ित हैं । लेकिन वर्तमान समय में अर्बन (शहरी) नक्सलवाद की समस्या का मुद्दा भी बार बार चर्चा में आता रहता है। इसका उदाहरण भीमा कोरेगांव के मामले के बाद हुईं गिरफ्तारियां हैं । अर्बन नक्सलवाद की नीति CPIM द्वारा 2004 में जारी हुए “अर्बन पर्सपेक्टिव” से प्रेरित बताई जाती है। इसका उद्देश्य बड़े शहरों , विश्वविद्यालयों तक नक्सवाद की पहुंच बनाना हैं ।

नक्सलवाद के कारण – इसका प्रमुख कारण देश के आदिवासी व पिछड़े क्षेत्रों तक विकास कार्यों का न पहुंचना। उत्पीड़न , नौकरी व साक्षरता की कमी , खनिजों के उत्खनन में उनकी घरों आदि को छीनना और पुलिस द्वारा बड़े पैमाने पर दमन को बताया जाता है ।
लेकिन वर्तमान स्थिति की बात करें तो यह आंदोलन अपने मार्ग से भटक कर उत्पीड़न आदि के विरोध के बजाय विकास कार्यों के बाधक के रूप में दिखाई पड़ने लगा है । विकास कार्यो में बाधा पहुँचाना , लेवी की वसूली , जवानों व विरोधी लोगों की हत्याएं करना इस बात का उदाहरण हैं ।

सरकार के कदम – कई प्रभावी नीतियों की वजह से आज नक्सलवाद की समस्या में काफ़ी सुधार भी देखने को मिला है । 2017 में सरकार ने इस समस्या से निबटने को SAMADHAN नीति का प्रारंभ किया। इसका मुख्य उद्देश्य कुशल व आक्रामक नीति द्वारा ख़ुफ़िया तंत्र को मजबूत बनाना , नक्सलियों के वित्त पोषण को ख़त्म करना आदि है । इसके अलावा पिछड़े इलाकों तक विकास कार्य – योजनाओं को पहुँचाना ,संचार , स्कूल , अस्पताल , बैंक व सड़कों की स्थिति सही करना आदि कार्य किएं गएं हैं । वहीं आत्मसमर्पण नीति को भी बढ़ावा दिया गया है जिसमें नक्सलियों के लिए प्रोत्साहन राशि व रोजगार की सुविधा दी गई है ।

आगे – भले ही सरकार ने नक्सलवाद से निबटने को कई कदम उठाएं हों लेकिन अब भी इसमें बड़ा सफ़र तय करना बाकी है । विकास कार्यों की सरल पहुँच व नीतियों का सही क्रियान्वयन जरूरी है । वहीं हमारे पुलिस व जवानों के लिए नई तकनीक व ख़ुफ़िया तंत्र को मजबूत करने की जरूरत है जिससे भविष्य में बड़ी दुर्घटनाओं से बचा जा सके । इसके अलावा सबसे ज़रुरी है कि सरकार नक्सलियों , आदिवासी , वंचितों तक यह संदेश पहुंचाए की पुलिस व सरकार आदि उनकी हितैषी है न की दुश्मन , और बन्दूक किसी समस्या का हल नहीं बल्कि समस्या को बढ़ाना है ।

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