UP की चुनावी कथा: जब पूर्वांचल की राजनीति में हुई बाहुबलियों की एंट्री

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यूपी की सियासत में पूर्वांचल का रोल सबसे अहम माना जाता है। ( up election 2022 ) कहा जाता है कि यूपी की सत्ता की चाबी भी पूर्वांचल के पास ही रहता है। यानी जो पूर्वांचल जीत लिया, वो सीएम की कुर्सी जीत लिया। आज हम उसी पूर्वांचल की कहानी बताने जा रहे हैं, जब यहां की राजनीति में बाहुबलियों की एंट्री हुई थी।  History Of UP Assembly Election

साल 1980 से हुई शुरुआत- History Of UP Assembly Election

साल 1980, यही वो दौर था जब पूर्वांचल बाहुबलियों की गिरफ्त में आ चुका था। इसके सूत्रधार थे वीरेंद्र प्रताप शाही और पंडित हरिशंकर तिवारी। 1980 का दशक ऐसा था जब शाही और तिवारी के बीच गैंगवार की गूंज अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी सुनाई देती थी। ब्राह्मण बनाम ठाकुर के समीकरण पर दोनों का साम्राज्य कायम था। रेलवे के ठेके दोनों के लिए अहम थे। History Of UP Assembly Election

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साल 1980 में हुए उपचुनाव में महराजगंज के लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से वीरेंद्र प्रताप शाही निर्दल लड़े और जीते। 1985 में भी चुनाव जीतकर शाही ने राजनीति में अपनी मजबूत दखल दिखाई। उधर हाता वाले बाबा यानी हरिशंकर तिवारी (harishankar tiwari history) भी 1985 में जेल में रहते हुए चिल्लूपार विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और जीत हासिल की। VIRENDRA SHAHI history

तिवारी 1997 से लेकर 2007 तक लगातार यूपी में मंत्री रहे। इन दोनों की राजनीति में प्रवेश सफल रहने के बाद तो पूर्वांचल की सियासत में आपराधिक छवि वालों का दखल तेजी से बढ़ने लगा।

virendra shahi
वीरेंद्र प्रताप शाही

1997 में श्री प्रकाश शुक्ला ने की वीरेंद्र प्रताप शाही की हत्या- 

उसी दौर में एक और कुख्यात माफिया श्री प्रकाश शुक्ला का उदय हो चुका था। वही श्री प्रकाश, जिसनें 1997 में ठाकुर गुट के नेता वीरेंद्र शाही को लखनऊ शहर में गोलियों से भून दिया था। कहा जाता है कि श्री प्रकाश भी चिल्लूपार विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का मन बना लिया था। इसके लिए उसने हरिशंकर तिवारी को भी मारने की प्लानिंग कर ली थी। लेकिन, पहली बार शुक्ला के लिए ही बनाई गई STF ने उसे मार गिराया।

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पूर्वांचल की 160 सीट, सभी पर बाहुबली नेताओं का वर्चस्व

1980 के बाद से आज 2021 तक, आलम ये हो चुका है कि पूर्वांचल में विधानसभा की लगभग 160 सीटें हैं, जिनमें लगभग सभी सीटों पर किसी न किसी बाहुबली नेता का प्रभाव माना जाता है। कथिततौर पर यहां तक कहा जाता है कि एक माफिया डॉन अपने इलाके की 10 से 12 सीटों पर वोट को इधर से उधर करने में गजब की महारथ रखता है।

 

—यूपी की चुनावी कथा के अगले सीरीज में हम पढ़ेगे- क्या पूर्वांचल में बिना बाहुबल के राजनीति असंभव है?

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